...........................सोलहवीं शताब्दी में जब मार्टिन लूथर के नेतृत्व में जर्मनी के राजनैतिक अस्थिरता के आंदोलन शुरू हुआ तो तीस वर्षीय धर्मयुद्ध (1618-1648) के साथ अंतिम परिणाम पर पहुंच गया और इसमें जर्मनी के लगभग तीन सौ टुकड़े हुए 1701 में फ्रेडरिक प्रशिया राज का आगाज किया और पहला राजा बन गया , जर्मनी 17-18 वीं में छोटे-छोटे टुकड़े प्रशा के रूप में स्थापित हो गया था और गाहे-बगाहे उन्नति भी कर रहा था ।।
,,,,,,,,, इसी बीच सदी शताब्दी के महान पुरुष भी अवतरित हो रहें थे लेकिन जिनके चलते जर्मनी में एक नये विचार में प्रवेश किया वह थे कांट
जर्मनी , कोनिग्जवर्ग (Konigsberg )
कांट के पिता का नाम जोहान जार्ज कांत व बड़े भाई
का नाम जोहान हैन्रिक कांत (जैसे उत्तर भारत में और दक्षिण भारत में नाम के आगे कांत लगाने की एक शब्द जोड़ने की परंपरा मौजूद है , इसी सदृश दिखाई देता है, हालांकि पश्चिमी देशों में लोगों का नाम जीव वैज्ञानिक आधार पर रखने की परंपरा है और भारत में परंपरा के अनुसार रखने की प्रथा) ।
परिवार दरिद्र था , परिवारिक वातावरण धार्मिक था और कांट खुद अंतर्मुखी प्रवृत्ति वाले थे , आजन्म ब्रह्मचारी थे यथासमय, यथानियम दैनिक दिनचर्या का पालनकर्त्ता व गंभीर अध्ययन में तल्लीन कोनिंग्जवर्ग विश्वविद्यालय में गणित, विज्ञान और दर्शन के अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र थे , शिक्षा समाप्ति के पश्चात कुछ दिनों तक जीविका निर्वहन के लिए इधर-उधर के संपन्न परिवारों में शिक्षक का कार्य करते रहे और बाद में विश्वविद्यालय में शिक्षक के रूप में उनकी नियुक्ति हो गई , जिसके बाद प्रधानाध्यापक और फिर अध्यक्ष हो गए ,,,,,, जब वे घूमने निकलते थे तो लोग उनको देखकर अपनी घड़ियां मिलाया करते थे ( जैसे वर्तमान समय में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के कार्डियोलॉजिस्ट महान डां. टी.के. लहड़ी सर)
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कांट , कर्त्तव्य परायन और उदार हृदय के तो थे किन्तु उनका बाह्य जीवन घटना-शून्य था , वे अपने प्रांत के बाहर कभी निकले ही नहीं , साधारण जीवन, सरल व घटना-शून्य होने के बावजूद ,,, उनके विचार अत्यंत असाधारण, जटिल और क्रांतिकारी था , जो तत्कालीन जर्मनी व वर्तमान विश्व के विज्ञान, समाज ,विधि , दर्शन व राजनीतिक अनुभव को परिभाषित करने में सहयोगी सिद्ध हुआ ,,,,,,
......... अगले भाग में कांट के दर्शन को समझने पर बल दिया जाएगा ।।
धन्यवाद 🙏
गोपाल झा , वाराणसी
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