बुधवार, 1 सितंबर 2021

सुगमदर्शन: लेखकों का अखाड़ा

सनातन धर्मियों के लिए "पांच महायज्ञ"
मनुस्मृति के तीसरे अध्याय के श्लोक संख्या 70(७०) में लिखा गया है:-
अध्यापनं ब्रह्मयस: पितृयज्ञस्तु तर्पणम् ।
होमो दैवो बलिभौतो नृयज्ञोअ्तिथिपूजनम्।।

(विवरण)
पांच महायज्ञ:-
१) ब्रह्मयस:- वेद का अध्ययन और अध्यापन करना।
२) देवयस:- देवो के लिए अग्नि में आहुति देना।
३) पितृयस:- पितरों का तर्पण करना।
४) नृयस:- अतिथियों का सत्कार करना।
५) भूतयस:- प्राणियों के लिए अन्न का बलि प्रदान करना ।

वैसे यह भी कहां गया है कि विधर्म,परधर्म,उपमा,छल, और आभास ऐसे पांच महायज्ञ करना चाहिए , किंतु हम यहां मनुस्मृति वाले महायज्ञ में जो सुगमदर्शन खोज रहे हैं उसपर ही विचार करें तो सनातन संस्कृति के इस छोटे से शब्दगुच्छ में Ecosystems  का संपूर्ण समाधान सिर्फ धर्म-कर्म करने मात्र से संपृक्ति प्राप्त कर लेता है , जिसमें यदि सभी मानव सिर्फ अंतिम महायज्ञ भूतयस को ही सकुशल संपन्न करले तो प्राणियों अर्थात जीव जंतु का पोषण क्रिया अविरल प्रवाह में आ सकता है तो भला सोचिए कि तत्कालीन विश्व का भूखमरी जो एक वैश्विक समस्या है उसका निदान संभव है या नहीं ?
निवेदन:-
मित्रों आपके प्रतिक्रिया का हमें बेसब्री से इंतज़ार होता है, कारण हमने अनजाने में एक कठोर निर्णय लिया है कि जन सामान्य के लिए अबूझमाड़ की जंगलों की भांति भूल-भुलैया जैसा विषय बन चुका दर्शन शास्त्र को सुगमदर्शन में बदलना , इस कार्य में सफलता मिलेगी तो यह समाज में व्याप्त बुराइयों का नाश करेगा , असफलता मिली तो बुराईयों को कम अवश्य करेगा अतः हमें पूर्ण विश्वास है कि आप सभी का साथ सहयोग समर्थन सुझाव और समीक्षा हमें अकेला नहीं रहने देगा ।
धन्यवाद
गोपाल झा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी हेतु आपका धन्यवाद 🙏

#Janakprades

Welcome to #Sitamarhi, the Indian capital of #Janakpradesh. Friends, JanakPradesh is known as Videh, another name became popular...