शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

#सुगमदर्शन//#आलोचनावाद (Critical Philosophy)

इमानुएल कांट , दार्शनिक (भाग 01 जीवन परिचय)
...........................सोलहवीं शताब्दी में जब मार्टिन लूथर के नेतृत्व में जर्मनी के राजनैतिक अस्थिरता के आंदोलन शुरू हुआ तो  तीस वर्षीय धर्मयुद्ध  (1618-1648) के साथ अंतिम परिणाम पर पहुंच गया और इसमें जर्मनी  के लगभग तीन सौ टुकड़े हुए 1701 में फ्रेडरिक प्रशिया राज का आगाज किया और पहला राजा बन गया , जर्मनी 17-18 वीं में छोटे-छोटे टुकड़े प्रशा के रूप में स्थापित हो गया था और गाहे-बगाहे उन्नति भी कर रहा था ।।
 ,,,,,,,,, इसी बीच सदी शताब्दी के महान पुरुष भी अवतरित हो रहें थे लेकिन जिनके चलते जर्मनी में एक नये विचार में प्रवेश किया वह थे  कांट
             (22-04-1724 से  12-02-1804)

                   जर्मनी , कोनिग्जवर्ग (Konigsberg ) 
 कांट के पिता का नाम जोहान जार्ज कांत व बड़े भाई 
का नाम जोहान हैन्रिक कांत (जैसे उत्तर भारत में और दक्षिण भारत में नाम के आगे कांत लगाने की एक शब्द  जोड़ने की  परंपरा मौजूद है , इसी सदृश दिखाई देता है, हालांकि पश्चिमी  देशों में लोगों का  नाम जीव वैज्ञानिक आधार पर रखने की परंपरा है और भारत में परंपरा के अनुसार रखने की प्रथा) ।
परिवार दरिद्र था , परिवारिक वातावरण धार्मिक था और कांट खुद अंतर्मुखी प्रवृत्ति वाले थे , आजन्म ब्रह्मचारी थे यथासमय, यथानियम दैनिक दिनचर्या का पालनकर्त्ता व  गंभीर अध्ययन में तल्लीन कोनिंग्जवर्ग विश्वविद्यालय में गणित, विज्ञान और दर्शन के अत्यंत  प्रतिभाशाली छात्र थे , शिक्षा समाप्ति के पश्चात कुछ दिनों तक जीविका निर्वहन के लिए इधर-उधर के संपन्न परिवारों में शिक्षक का कार्य करते रहे और बाद में विश्वविद्यालय में शिक्षक के रूप में उनकी नियुक्ति हो गई , जिसके बाद प्रधानाध्यापक और फिर अध्यक्ष हो गए ,,,,,, जब वे घूमने निकलते थे तो लोग उनको देखकर अपनी घड़ियां मिलाया करते थे ( जैसे वर्तमान समय में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी  के कार्डियोलॉजिस्ट महान डां. टी.के. लहड़ी सर) 
Whatsapp:- +91-9795261267

कांट , कर्त्तव्य परायन और उदार हृदय के तो थे किन्तु उनका बाह्य जीवन घटना-शून्य था , वे अपने प्रांत के बाहर कभी निकले ही नहीं , साधारण जीवन, सरल व घटना-शून्य होने के बावजूद ,,, उनके विचार अत्यंत असाधारण, जटिल और क्रांतिकारी था , जो तत्कालीन जर्मनी व वर्तमान विश्व के विज्ञान, समाज ,विधि , दर्शन व राजनीतिक अनुभव को परिभाषित करने में सहयोगी सिद्ध हुआ ,,,,,,
                     ......... ‌‌ अगले भाग में कांट के दर्शन को समझने पर बल दिया जाएगा ।।
धन्यवाद 🙏
गोपाल झा , वाराणसी

बुधवार, 8 सितंबर 2021

सुगमदर्शन: लेखकों का अखाड़ा

....... कोशिश जारी है , सुगमदर्शन :लेखकों का अखाड़ा अब  दृश्य रुप में भी मिलेगा ।।

जल्द विडियो भी मिल सकता है।।

......  आपको तय करना होगा कि हम माइक और कलम दोनों थाम लें या कोई एक ?

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

न्याय-दर्शन

न्यायपालिका से कार्यपालिका को चिठ्ठी आईं हैं क्या ?
प्रयागराज उच्च न्यायालय के जस्टिस रंगनाथ पांडेय जी का प्रधानमंत्री जी को पत्र  (रिपोर्ट : वायरल पेपर कटिंग)

न तो इसपर बोल सकता हूं और चुपचाप देखता हूं तो अन्याय होगा ,,,,,,,,,,,, बेहतर है न्याय व्यवस्था स्वयंभू बनते हुए खुद का समीक्षा करें और लोकतंत्र में सर्वोपरि "लोक" अर्थात नागरिकों का इकाई है अतः न्याय विभाग को "समर्पित सेवा" बना कर नागरिकों के इकाईयों अर्थात "लोक" को अर्पित करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ करें 🙏

सुगमदर्शन

बुधवार, 1 सितंबर 2021

सुगमदर्शन: लेखकों का अखाड़ा

सनातन धर्मियों के लिए "पांच महायज्ञ"
मनुस्मृति के तीसरे अध्याय के श्लोक संख्या 70(७०) में लिखा गया है:-
अध्यापनं ब्रह्मयस: पितृयज्ञस्तु तर्पणम् ।
होमो दैवो बलिभौतो नृयज्ञोअ्तिथिपूजनम्।।

(विवरण)
पांच महायज्ञ:-
१) ब्रह्मयस:- वेद का अध्ययन और अध्यापन करना।
२) देवयस:- देवो के लिए अग्नि में आहुति देना।
३) पितृयस:- पितरों का तर्पण करना।
४) नृयस:- अतिथियों का सत्कार करना।
५) भूतयस:- प्राणियों के लिए अन्न का बलि प्रदान करना ।

वैसे यह भी कहां गया है कि विधर्म,परधर्म,उपमा,छल, और आभास ऐसे पांच महायज्ञ करना चाहिए , किंतु हम यहां मनुस्मृति वाले महायज्ञ में जो सुगमदर्शन खोज रहे हैं उसपर ही विचार करें तो सनातन संस्कृति के इस छोटे से शब्दगुच्छ में Ecosystems  का संपूर्ण समाधान सिर्फ धर्म-कर्म करने मात्र से संपृक्ति प्राप्त कर लेता है , जिसमें यदि सभी मानव सिर्फ अंतिम महायज्ञ भूतयस को ही सकुशल संपन्न करले तो प्राणियों अर्थात जीव जंतु का पोषण क्रिया अविरल प्रवाह में आ सकता है तो भला सोचिए कि तत्कालीन विश्व का भूखमरी जो एक वैश्विक समस्या है उसका निदान संभव है या नहीं ?
निवेदन:-
मित्रों आपके प्रतिक्रिया का हमें बेसब्री से इंतज़ार होता है, कारण हमने अनजाने में एक कठोर निर्णय लिया है कि जन सामान्य के लिए अबूझमाड़ की जंगलों की भांति भूल-भुलैया जैसा विषय बन चुका दर्शन शास्त्र को सुगमदर्शन में बदलना , इस कार्य में सफलता मिलेगी तो यह समाज में व्याप्त बुराइयों का नाश करेगा , असफलता मिली तो बुराईयों को कम अवश्य करेगा अतः हमें पूर्ण विश्वास है कि आप सभी का साथ सहयोग समर्थन सुझाव और समीक्षा हमें अकेला नहीं रहने देगा ।
धन्यवाद
गोपाल झा

सुगमदर्शन: लेखकों का अखाड़ा

sugamdarsion: arenas of writers" अर्थात लेखकों के अखाड़ा के रूप में प्रतिष्ठित आपका "विचार दर्शन " जिंसे आप #सुगमदर्शन के नाम से जानते हैं, साथियों सुगमदर्शन रातों-रात तामझाम खड़ा करके प्रसिद्धि पाने व स्टैंट नहीं है जिसके चलते आपको इसका कोई स्थिर प्रारुप प्राप्त हो ,अपितु अथाह सागर जैसे विचार का समुच्चय है जिसके गति व स्थिति दोनों एक सामान्य जनजीवन के लिए अबूझमाड़ की जंगलों की भांति भूल-भुलैया जैसा है किंतु उसी जंगल से प्राप्त वन संपदा उसी जनसामान्य के लिए जीवनदायिनी सिद्ध होने में संदेह नहीं

#Janakprades

Welcome to #Sitamarhi, the Indian capital of #Janakpradesh. Friends, JanakPradesh is known as Videh, another name became popular...